Saturday, June 6, 2020

अर्धविराम (Semicolon)


दोस्तों के साथ मिल क़हक़हे लगाना
वो  हंसना वो  ठहाके लगाना
भूला हुआ हो जैसे एक फ़साना ! 

थिरकते हुए पैरों पर रातों की जवानी
कभी  मस्ती, कभी शोखियों की रवानी
बन गयी अब एक किताब की कहानी !

हंसते खिलखिलाते सुंदर से चेहरे
चांदी  सी छवि  रंग सुनहरे
पड़ गए उन पर नकाबों  के पहरे !

वो  शादी के मंडप को सजाना
गीत गाना, हंस कर गले लगाना
लगता है अब एक रिवाज़ पुराना !

बाजारो- दुकानों से नए-नए वस्त्र  लाना           
कभी गली में कभी रेस्टोरेंट में खाना खाना
कहाँ  खो गए वह दिन कोई नहीं जाना !


सिनेमाघर में चलते हुए चल-चित्र
देखते थे हम सब मिलकर मित्र
आजकल सब हो गए कहीं तितर-बितर !

गुरुद्वारे में सजी हुई  संगत का साथ
सर पे आशीर्वाद देता बड़े का हाथ
बन गयी वो मुश्किल-सी मिलती सौगात !

मेलों -महफिलों का  रंग कहीं खो गया
सांसों पर जैसे गहरा कोहरा सा छा गया
जीवन की राह पर जैसे अर्धविराम आ गया !

जीवन की राह पे जैसे अर्धविराम आ गया
इस अर्धविराम ने जीवन को नई राह दिखाई
जो पास है उसका मोल करो ये बात सिखाई !

बसंत ऋतू की ठंडी ठंडी हवा
गाते हुए पंछियों  के गीत
बारिश का अमृत जैसा पानी
बन गयी मेरी हर श्याम सुहानी !


खुले नीले आसमान में अंगड़ाई लेता बादल
खिलती हुई कलिओं से जागती आशा
खिले हुए फूलों की सुंदर मुस्कान
अन्मोल प्रकृति में बस गयी मेरी जान !

उगते सूरज का सुनहरा उजाला
बहते हुए झरने का संगीत
हरे- भरे पेड़ो की मीठी छाँव               
घर में ही बन गया मेरा सुन्दर गाँव !

क्या विदेश, क्या देश
क्या शहर , क्या नगर
इस गाँव से संभव हर ख़ुशी
इस गाँव से बढ़कर अब कोई नहीं ख़ुशी !
                                
                                                        अमृत


Here is the link (Ardhviram) if you would like to hear the poem.



1 comment:

Ankur Acharya said...

अत्यंत मार्मिक है यह कविता,
घर और गावों की बताती है उपयोगिता,
आप कवि भी हैं - पता न था!