दोस्तों के साथ मिल क़हक़हे लगाना
वो
हंसना वो ठहाके लगाना
भूला हुआ हो जैसे एक फ़साना !
थिरकते हुए पैरों पर रातों की जवानी
कभी
मस्ती, कभी शोखियों की रवानी
बन गयी अब एक किताब की कहानी !
हंसते खिलखिलाते सुंदर से चेहरे
चांदी
सी छवि रंग सुनहरे
पड़ गए उन पर नकाबों के पहरे !
वो
शादी के मंडप को सजाना
गीत गाना, हंस कर गले लगाना
लगता है अब एक रिवाज़ पुराना !
बाजारो- दुकानों से नए-नए वस्त्र लाना
कभी गली में कभी रेस्टोरेंट में खाना खाना
कहाँ
खो गए वह दिन कोई नहीं जाना !
सिनेमाघर में चलते हुए चल-चित्र
देखते थे हम सब मिलकर मित्र
आजकल सब हो गए कहीं तितर-बितर !
गुरुद्वारे में सजी हुई संगत का साथ
सर पे आशीर्वाद देता बड़े का हाथ
बन गयी वो मुश्किल-सी मिलती सौगात !
मेलों -महफिलों का रंग कहीं खो गया
सांसों पर जैसे गहरा कोहरा सा छा गया
जीवन की राह पर जैसे अर्धविराम आ गया !
जीवन की राह पे जैसे अर्धविराम आ गया
इस अर्धविराम ने जीवन को नई राह दिखाई
जो पास है उसका मोल करो ये बात सिखाई !
बसंत ऋतू की ठंडी ठंडी हवा
गाते हुए पंछियों के गीत
बारिश का अमृत जैसा पानी
बन गयी मेरी हर श्याम सुहानी !
खुले नीले आसमान में अंगड़ाई लेता बादल
खिलती हुई कलिओं से जागती आशा
खिले हुए फूलों की सुंदर मुस्कान
अन्मोल प्रकृति में बस गयी मेरी जान !
उगते सूरज का सुनहरा उजाला
बहते हुए झरने का संगीत
हरे- भरे पेड़ो की मीठी छाँव
घर में ही बन गया मेरा सुन्दर गाँव !
क्या विदेश, क्या देश
क्या शहर , क्या नगर
इस गाँव से संभव हर ख़ुशी
इस गाँव से बढ़कर अब कोई नहीं ख़ुशी !
अमृत
Here is the link (Ardhviram) if you would like to hear the poem.
1 comment:
अत्यंत मार्मिक है यह कविता,
घर और गावों की बताती है उपयोगिता,
आप कवि भी हैं - पता न था!
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