शरद ऋतु
ग्रीष्म ऋतु को अल्विदा कहता
अंगड़ाई लेता, करवट पलटता
शरद का मौसम एक त्योहार
इसके हर रंग में बस गए जीवन के सब तार
ठंडी ठंडी हवा के झौंके
बहते सरकते कहकहे भरते
तपिश से तपते तन मन का करार
इनके हर स्पर्श से मिलता जीवन को निखार
इस राह से उस राह
जिस राह मैं गुजर जाऊँ
हरे पीले लाल केसरी रंगों की है बारात
औंस की नीरव बूंदें जैसे अमृत की बरसात
उड़ते हुए रंग बिरंगे पत्तों ने
मेरे कानों में हलके से कुछ कहा
कह दी छोटी प्यारी सी बात
पतझड़ अंत नहीं, है एक नयी सुन्दर शुरुआत
कल नये पुष्प आयंगे
नयी सुबह लायेंगे
नये रंग बिखरायेंगे
नये वादे निभाएँगे
नया संसार बनायंगे
ये है प्रकति की मधुर सौगात
पतझड़ अंत नहीं, है एक नयी सुन्दर शुरुआत
अमृत
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